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जनाजा

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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बिन आस के दुनियां में जीने में क्या रक्खा है
दिल में दिलबर के लिए आशियाना बना रक्खा है

उसके प्यार और चाहत ने मुझे दीवाना बना रक्खा है
कहीं अकेला न रह जाऊ मैं सो जनाजा सजा रक्खा है

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