मैं, लेखनी और जिंदगी
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नरक की अंतिम जमीं तक गिर चुके है आज जो
नापने को कह रहे , हमसे बह दूरिया आकाश की ..
इस कदर अनजान है ,हम आज अपने हाल से
खोजने से मिलती नहीं अब गोलिया सल्फास की
आज हम महफूज है ,दुश्मनों के बीच में
दोस्ती आती नहीं है रास अब बहुत ज्यादा पास की
बंट गयी सारी जमी ,फिर बंट गया ये आसमान
क्यों आज फिर हम बंट गए ज्यों गद्दिया हो तास की
हर जगह महफ़िल सजी पर दर्द भी मिल जायेगा
हर कोई कहने लगा अब आरजू बनवास की
मौत के साये में जीती चार पल की जिंदगी
क्या मदन ये सारी दुनिया, है बिरोधाभास की
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