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गीत

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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गीत

खुशबुओं की बस्ती में रहता प्यार मेरा है
आज प्यारे प्यारे सपनो ने आकर के मुझको घेरा है
उनकी सूरत का आँखों में हर पल हुआ यूँ बसेरा है
अब काली काली रातो में मुझको दीखता नहीं अँधेरा है

जब जब देखा हमने दिल को ,ये लगता नहीं मेरा है
प्यार पाया जब से उनका हमने ,लगता हर पल ही सुनहरा है
प्यार तो है सबसे परे ,ना उसका कोई चेहरा है
रहमते उदा की जिस पर सर उसके बंधे सेहरा है

प्यार ने तो जीबन में ,हर पल खुशियों को बिखेरा है
ना जाने ये मदन ,फिर क्यों लगे प्यार पे पहरा है

काब्य प्रस्तुति :
मदन मोहन सक्सेना

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