Menu
blogid : 10271 postid : 268

ग़ज़ल

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
  • 211 Posts
  • 1274 Comments

कुछ इस तरह से हमने अपनी जिंदगी गुजारी है
न जीने की तमन्ना है न मौत हमको प्यारी है…

लाचारी का दामन आज हमने थाम रक्खा है
उनसे किस तरह कह दे की उनकी सूरत प्यारी है

निगाहों में बसी सूरत फिर उनको क्यों तलाशे है
ना जाने ऐसा क्यों होता और कैसी बेकरारी है

बादल बेरुखी के दिखने पर भी क्यों मुहब्बत में
हमको ऐसा क्यों लगता की उनसे अपनी यारी है

परायी लगती दुनिया में गम अपने ही लगते है
आई अब मुहब्बत में सजा पाने की बारी है

ये सांसे ,जिंदगी और दिल सब कुछ तो पराया है
ब्याकुल अब मदन ये है की बड़ती क्यों उधारी है

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply