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ग़ज़ल

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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जालिम लगी दुनिया हमें हर शक्श बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

नफरत से की गयी चोट से हर जखम हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

प्यार के एहेसIश से जब जब रहे हम बेखबर
तब तब लगा हमको की हम जी रहे बेकार से

इजहार राजे दिल का बो जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से

जब प्यार से इंकार हो तो इकरार से है बो भला
मजा पाने लगा है अब ये मदन इकरार का इंकार से

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