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ग़ज़ल

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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आगमन नए दौर का आप जिस को कह रहे
आजकल का ये समय भटका हुआ है मूल से

सेक्स की रंगीनियों के आज के इस दौर में
स्वार्थ की तालीम अब मिलने लगी स्कूल से

दर्द का तोहफा मिला हमको दोस्ती के नाम पर
क्यों दोस्तों के बीच में हम जी रहे थे भूल से

प्यार की हर बात से महरूम हो गए आज हम
दर्द की खुशबु भी देखो आ रही है फूल से

बंट गयी सारी जमी फिर बंट गया ये आसमान
अब खुदा बंटने लगा है इस तरह की तूल से

चार पल की जिंदगी में चाँद सांसो का सफ़र
मिलना तो आखिर है मदन इस धरा की धूल से

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

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