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राखी का त्यौहार

मैं, लेखनी और जिंदगी
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राखी का त्यौहार आ ही गया ,इस त्यौहार को मनाने के लिए या कहिये की मुनाफा कमाने के लिए समाज के सभी बर्गों ने कमर कास ली है। हिन्दुस्थान में राखी की परम्परा काफी पुरानी है . बदले दौर में जब सभी मूल्यों का हास हो रहा हो तो भला राखी का त्यौहार इससे अछुता कैसे रह सकता है। मुझे अभी भी याद है जब मैं छोटा था और राखी के दिन ना जाने कहाँ से साल भर ना दिखने बाली तथाकथित मुहबोली बहनें अब्तरित हो जातीं थी एक मिठाई का पीस और राखी देकर मेरे माँ बाबु से जबरदस्ती मनमाने रुपये बसूल कर ले जाती थीं। खैर जैसे जैसे समझ बड़ी बाकि लोगों से राखी बंधबाना बंद कर दी। जब तक घर पर रहा राखी बहनों से बंध्बता रहा पैसों का इंतजाम पापा करते थे मिठाई बहनें लाती थीं।अब दूर रहकर राखी बहनें पोस्ट से भेज देती हैं कभी कभी मिठाई के लिए कुछ रुपये भी साथ रख देती हैं।यदि अबकाश होता है तो ज़रा अच्छे से मना लेते है। पोस्ट ऑफिस जाकर पैसों को भेजने की ब्यबस्त्ता करके ही अपने कर्तब्यों की इत्श्री कर लेते हैं। राखी को छोड़कर पूरे साल मुझे याद भी रहता है की मेरी बहनें कैसी है या उनको भी मेरी कुछ खबर रखने की इच्छा रहती है ,कहना मुश्किल है . ये हालत कैसे बने या इसका जिम्मेदार कौन है काफी मगज मारी करने पर भी कोई एक राय बनती नहीं दीखती .

पर्व और त्यौहारों के देश कहे जाने वाले अपने देश में कई ऐसे त्यौहार हैं लेकिन इन सभी में राखी एक ऐसा पर्व है जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को और अधिक मजबूत और सौहार्दपूर्ण बनाए रखने का एक बेहतरीन जरिया सिद्ध हुआ है। राखी को बहनें अपने भाई की कलाई पर राखी बांधते हुए उसकी लंबे और खुशहाल जीवन की प्रार्थना करती हैं वहीं भाई ताउम्र अपनी बहन की रक्षा करने और हर दुख में उसकी सहायता करने का वचन देते हैं।

पारिवारिक रिश्तों का स्वरूप भी अब बदलता जा रहा है भाई-बहन को ही ले लीजिए, दोनों में झगड़ा ही अधिक होता है और वे एक-दूसरे की तकलीफों को समझते कम हैं हैं।आज वे अपनी भावनाओं का प्रदर्शन करते ज्यादा मिलते है लेकिन जब भाई को अपनी बहन की या बहन को अपनी भाई की जरूरत होती है तो वह मौजूद रहें ऐसी सम्भाबना कम होती जा रही है.

सामाजिक व्यवस्था और पारिवारिक जरूरतों के कारण आज बहुत से भाई अपनी बहन के साथ ज्यादा समय नहीं बिता पाते ऐसे में रक्षाबंधन का दिन उन्हें फिर से एक बाद निकट लाने में बहुत बड़ी भूमिका निभाता है। लेकिन बढ़तीं महंगाई , रिश्तों के खोखलेपन और समय की कमी की बजह से बहुत कम भाई ही अपनी बहन के पास राखी बंध्बाने जा पाते हों . सभी रिश्तों की तरह भाई बहन का रिश्ता भी पहले जैसा नहीं रहा लेकिन राखी का परब हम सबको सोचने के लिए मजबूर तो करता ही है की सिर्फ उपहार और पैसों से किसी भी रिश्तें में जान नहीं डाली जा सकती। राखी के परब के माध्यम से भाई बहनों को एक दुसरे की जरूरतों को समझना होगा और एक दुसरे की परिशिथ्त्यों को समझते हुए उनकी भाबनाओं की क़द्र करके राखी की महत्ता को पहचानना होगा। अंत में मैं अपनी बात इन शब्दों से ख़त्म करना चाहूगां .

मनाएं हम तरीकें से तो रोशन ये चमन होगा

सारी दुनियां से प्यारा और न्यारा ये बतन होगा

धरा अपनी ,गगन अपना, जो बासी बो भी अपने हैं

हकीकत में बे बदलेंगें ,दिलों में जो भी सपने हैं

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