मैं, लेखनी और जिंदगी
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कभी गर्दिशों से दोस्ती कभी गम से याराना हुआ
चार पल की जिन्दगी का ऐसे कट जाना हुआ..
इस आस में बीती उम्र कोई हमे अपना कहे .
अब आज के इस दौर में ये दिल भी बेगाना हुआ
जिस रोज से देखा उन्हें मिलने लगी मेरी नजर
आखो से मय पीने लगे मानो की मयखाना हुआ
इस कदर अन्जान हैं हम आज अपने हाल से
हमसे मिलकरके बोला आइना ये शख्श बेगाना हुआ
ढल नहीं जाते हैं लब्ज यूँ ही रचना में कभी
कभी गीत उनसे मिल गया कभी ग़ज़ल का पाना हुआ
प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना
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