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ग़ज़ल

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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जालिम लगी दुनिया हमें हर शख्श  बेगाना लगा
हर पल हमें धोखे मिले अपने ही ऐतबार से

नफरत से की गयी चोट का हर जख्म हमने सह लिया
घायल हुए उस रोज हम जिस रोज मारा प्यार से

प्यार के एहसास  से जब जब रहे हम बेखवर
तब तब लगा हम को की हम जी रहे बेकार से

इजहार राज ए  दिल का बह जिस रोज मिल करने लगे
उस रोज से हम पा रहे खुशबु भी देखो खार से

जब प्यार से इंकार हो तो इकरार से है बो भला
आने लगेगा तब मज़ा फिर  इकरार का इंकार से

क्या कहूँ कि आज कल का ये समय कैसा तो है
आदमी ब्यापार से तो प्यार करता , दूर रहता प्यार से

ग़ज़ल :
मदन मोहन सक्सेना

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