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खेल खिलाड़ी और रत्न

मैं, लेखनी और जिंदगी
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खेल खिलाड़ी और भारत रत्न

मेरा मानना है कि भारत रत्न या पद्म पुरस्कार जैसा सम्मान उन्हीं लोगों को दिया जाना चाहिए जिनके कार्य में व्यवसायिकता से परे देश, जन सामान्य, कला या संपूर्ण मानव जाति के लिये समर्पण साफ दिखाई दे. पेशेवर समर्पण तारीफ के काबिल हो सकता है, एक सीमा तक सम्मान का हकदार भी, राष्ट्रीय सम्मान का हकदार नहीं.
देश इस समय जब कुछ प्रदेशों में होने बाले चुनाब सरगर्मी को लेकर ब्यस्त है और मीडिया में ओपिनियन पोल को लेकर अटकलों का बाजार गरम हो। मीडिया मोदी के भाषणों को लेकर उत्साहित हो और मंहगाई से त्रस्त जनता मोदी को सुनने के लिए जोर शोर से आ रही हो। अचानक सचिन का क्रिकेट से सन्यास लेना और आनन् फानन में सचिन को भारत रत्न देना कई शंकाओं को जन्म देती है। लगता है कुछ लोग सचिन के माध्यम से आम जनता कि भाबनाओं का दोहन करना चाहतें हैं और अपनी असफलताओं से ध्यान हटाना चाहतें हैं। देश में राजनीतिक अवमूल्यन के इस दौर सचिन जैसों को ‘भारत रत्न’ मिलना एक स्वाभाविक प्रक्रिया सी लग रही है। जब सचिन को ‘भारत रत्न’ मिला तो एकबारगी मुझे लगा कि क्या सचिन भारत के रत्न (मूल्यवान) हैं और मैं कंकड़-पत्थर (मूल्यहीन)। मुझे विश्वास है कि करोड़ों लोगों को यही लगा होगा। पर, जिस तरह से देश के मुट्ठी भर लोग सचिन को भगवान का दर्जा दिलाने पर तुले हुए हैं, चाह कर भी आम लोग सचिन के विरोध की हिम्मत तक नहीं जुटा पा रहे हैं।सचिन से देश की भावी पीढ़ी को क्या प्रेरणा मिलेगी? यही न कि व्यक्तिगत उपलब्धि हासिल करो, दुनिया तुम्हारे सामने झुकेगी। तुम टैक्स ‘चोरी’ (बचाने) की कोशिश करो। तुम देश के लिए निरपेक्ष भाव से कुछ मत करो। बस अपनी हैसियत बढ़ाओ। अपने व्यक्तिगत रेकॉर्ड्स के लिए नए प्रतिभाशाली खिलाड़ियों का रास्ता रोके रहो। तुम सिर्फ अपनी सोचो, दुनिया भाड़ में जाए। अगर इस तरह की प्रेरणा नौजवानों को मिलती है तो यह देश के लिए घातक साबित होगा।सचिन ने लाख व्यक्तिगत रेकॉर्ड बनाए हों, लेकिन कभी भी वह बड़े मैचों में लोगों की उम्मीदों पर खरा नहीं उतर पाए हैं।भारत रत्न क्या अपनी गरिमा के साथ अन्नाय नहीं कर रहा है। अगर खेलों की दुनिया में भारत के किसी व्यक्ति को पूरे विश्व में बड़े पैमाने पर जाना जाता है तो ध्यानचंद के अलावा विश्वनाथन आनंद और लिएंडर पेस सचिन से बहुत आगे हैं. उनकी उपलब्धियां तेंदुलकर से ज्यादा हैं ! क्या अब भी आप भारत रत्न जैसे महान सम्मान का हक़दार सचिन को समझते हैं .देश ने दो दिग्गजों सचिन तेंदुलकर और डॉ.सीएनआर राव को उनके अलग-अलग क्षेत्रों क्रिकेट और साइंस में अतुलनीय योगदान के लिए भारत रत्न से सम्मानित किया है. डॉ. राव को भारत रत्न सही दिशा में एक बेहतर शुरुआत है, जिससे एक उम्मीद सी बंधती है कि देश अब शायद डॉ. भाभा और डॉ. साराभाई जैसे अपने विज्ञान नायकों को भी देर से ही सही, लेकिन शीर्ष सम्मान से सम्मानित करेगा. ये बात अलग है कि सचिन के जश्न में डॉ. राव की खबर दब सी गई है, डॉ.सीएनआर राव सॉलिड स्टेट साइंस में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपने आप में एक इंस्टीट्यूशन, एक प्राधिकरण के रूप में मशहूर हैं.जरा इस देश के लिए डॉ. भाभा के योगदान को भी याद कर लीजिए, जिन्हें अब तक भारत रत्न से सम्मानित नहीं किया गया है.
ये भी अनोखा संयोग है कि डॉ. भाभा से पहले खुद डॉ. सीएनआर राव को ही भारत रत्न से सम्मानित कर दिया गया पहले अब तक केवल तीन वैज्ञानिकों डॉ. सीवी रमन और पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम को ही भारत रत्न से सम्मानित किया गया है.देश के परमाणु कार्यक्रम के जनक डॉ. होमी जहांगीर भाभा, देश के अंतरिक्ष कार्यक्रम के प्रणेता डॉ. विक्रम साराभाई, सतीश धवन, बीरबल साहनी, जगदीश चंद्र बोस, शांति स्वरूप भटनागर, महान गणितज्ञ रामानुजन, सुब्रमणियम चंद्रशेखर, हरित क्रांति के जनक महान बायोटेक्नोलॉजिस्ट एमएस स्वामीनाथन, कई महान वैज्ञानिक ऐसे हैं देश के विकास को इस स्तर तक ले आने में जिनके योगदान को भुलाया नहीं जा सकता, उन्हें भारत रत्न नहीं मिला. भारत रत्न तो छोड़िए इनमें से कुछ वैज्ञानिकों को तो पद्मश्री तक नहीं दिया गया है. वैज्ञानिकों को भूल गईं और अब इनकी कहानियां स्कूलों की किताबों से दूर होते-होते नई पीढ़ी की चेतना से भी लुप्त हो चली हैं. डॉ. राव को भारत रत्न सही दिशा में एक बेहतर शुरुआत है, जिससे एक उम्मीद सी बंधती है कि देश अब शायद डॉ. भाभा और डॉ. साराभाई जैसे अपने विज्ञान नायकों को भी देर से ही सही, लेकिन शीर्ष सम्मान से सम्मानित करेगा. उम्मीद की जानी चाहिए योग्य लोगों को भारत रत्न से नबाजा जायेगा जिन्होनें अपना जीबन इस देश और अबाम कि बेहतरी के लिए लगाया है ना कि बिज्ञापन और करोड़ों कमाकर अपना समय गुजारा हो। भारत रत्न या पद्म पुरस्कार जैसा सम्मान उन्हीं लोगों को दिया जाना चाहिए जिनके कार्य में व्यवसायिकता से परे देश, जन सामान्य, कला या संपूर्ण मानव जाति के लिये समर्पण साफ दिखाई दे. पेशेवर समर्पण तारीफ के काबिल हो सकता है, एक सीमा तक सम्मान का हकदार भी, राष्ट्रीय सम्मान का हकदार नहीं.

मदन मोहन सक्सेना

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