Menu
blogid : 10271 postid : 684154

ये कैसा समाजबाद ये कैसा लोक संस्कृति का महोत्सब

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
  • 211 Posts
  • 1274 Comments

ये कैसा समाजबाद
ये कैसा लोक संस्कृति का महोत्सब
जहां ना तो लोक के ही दर्शन हुए
और ना ही संस्कृति का दर्शन हुआ
केबल दिखाबा दिखाबा और दिखाबा
सम्बेदनहीनता की पराकाष्टा
एक तरफ सैफई तो दूसरी तरफ ऐसी जगह जहां लोक त्रस्त हैं
अपने बच्चों की जान माल की हिफाज़त नहीं कर पा रहें हैं
कहतें हैं न कि जगह बदलती है
माहौल बदल जाता है
ये युबा सी एम् के इलाके में देखने को मिल जाता है
आम आदमी के कष्ट बैसे के बैसे हैं
सिर्फ और सिर्फ आश्बासन देने बाले किरदार बदलतें हैं
और एक हम है
कि हर बार भरोसा कर लेते हैं
चोट के बाबजूद कुछ सिखने को तैयार नहीं हैं
और ये चमकते चेहरें (फ़िल्मी कलाकार )
जो कोई इनको पैसा दे
उसके दरबाजे आ जायेंगें
खेल (मनोरंजन ) दिखाने के लिए
इनके लिए लोगों की परेशानी
कोई महत्ब नहीं रखती है

Read Comments

    Post a comment

    Leave a Reply