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ग़ज़ल ( दिल में दर्द जगाता क्यों हैं )

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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गर दबा नहीं है दर्द की तुझ पे
दिल में दर्द जगाता क्यों हैं

जो बीच सफर में साथ छोड़ दे
उन अपनों से मिलबाता क्यों हैं

क्यों भूखा नंगा ब्याकुल बचपन
पत्थर भर पेट खाता क्यों हैं

अपने ,सपने कब सच होते
तन्हाई में डर जाता क्यों हैं

चुप रह कर सब जुल्म सह रहे
अपनी बारी पर चिल्लाता क्यों हैं

प्रस्तुति:
मदन मोहन सक्सेना

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