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आप हम और मकर संक्रान्ति

मैं, लेखनी और जिंदगी
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आप हम और मकर संक्रान्ति

आप पर सूर्य देवता के आशीर्बाद की बर्षा हो और आपका जीबन ख़ुशी की अनंत सूर्य किरणों से भर जाये।
मकर संक्रांति की बहुत बहुत शुभकामनायें।

मकर संक्रांति का ऐतिहासिक महत्व
ऐसी मान्यता है कि इस दिन भगवान भास्कर अपने पुत्र शनि से मिलने स्वयं उसके घर जाते हैं. चूँकि शनिदेव मकर राशि के स्वामी हैं, अत: इस दिन को मकर संक्रांति के नाम से जाना जाता है. महाभारत काल में भीष्म पितामह ने अपनी देह त्यागने के लिये मकर संक्रांति का ही चयन किया था. मकर संक्रांति के दिन ही गंगाजी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होती हुई सागर में जाकर मिली थीं.

मकर संक्रांति का महत्व
शास्त्रों के अनुसार, दक्षिणायण को देवताओं की रात्रि अर्थात् नकारात्मकता का प्रतीक तथा उत्तरायण को देवताओं का दिन अर्थात् सकारात्मकता का प्रतीक माना गया है. इसीलिए इस दिन जप, तप, दान, स्नान, श्राद्ध, तर्पण आदि धार्मिक क्रियाकलापों का विशेष महत्व है. ऐसी धारणा है कि इस अवसर पर दिया गया दान सौ गुना बढ़कर पुन: प्राप्त होता है. इस दिन शुद्ध घी एवं कम्बल का दान मोक्ष की प्राप्ति करवाता है. जैसा कि निम्न श्लोक से स्पष्ठ होता है-

माघे मासे महादेव: यो दास्यति घृतकम्बलम.
स भुक्त्वा सकलान भोगान अन्ते मोक्षं प्राप्यति॥

मकर संक्रांति के अवसर पर गंगास्नान एवं गंगातट पर दान को अत्यन्त शुभ माना गया है. इस पर्व पर तीर्थराज प्रयाग एवं गंगासागर में स्नान को महास्नान की संज्ञा दी गयी है. सामान्यत: सूर्य सभी राशियों को प्रभावित करते हैं, किन्तु कर्क व मकर राशियों में सूर्य का प्रवेश धार्मिक दृष्टि से अत्यन्त फलदायक है. यह प्रवेश अथवा संक्रमण क्रिया छ:-छ: माह के अन्तराल पर होती है. भारत देश उत्तरी गोलार्ध में स्थित है. मकर संक्रांति से पहले सूर्य दक्षिणी गोलार्ध में होता है अर्थात् भारत से अपेक्षाकृत अधिक दूर होता है. इसी कारण यहाँ पर रातें बड़ी एवं दिन छोटे होते हैं तथा सर्दी का मौसम होता है. किन्तु मकर संक्रांति से सूर्य उत्तरी गोलार्द्ध की ओर आना शुरू हो जाता है. अतएव इस दिन से रातें छोटी एवं दिन बड़े होने लगते हैं तथा गरमी का मौसम शुरू हो जाता है. दिन बड़ा होने से प्रकाश अधिक होगा तथा रात्रि छोटी होने से अन्धकार कम होगा. अत: मकर संक्रांति पर सूर्य की राशि में हुए परिवर्तन को अंधकार से प्रकाश की ओर अग्रसर होना माना जाता है. प्रकाश अधिक होने से प्राणियों की चेतनता एवं कार्य शक्ति में वृद्धि होगी. ऐसा जानकर सम्पूर्ण भारतवर्ष में लोगों द्वारा विविध रूपों में सूर्यदेव की उपासना, आराधना एवं पूजन कर, उनके प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की जाती है. सामान्यत: भारतीय पंचांग पद्धति की समस्त तिथियाँ चन्द्रमा की गति को आधार मानकर निर्धारित की जाती हैं, किन्तु मकर संक्रांति को सूर्य की गति से निर्धारित किया जाता है. इसी कारण यह पर्व प्रतिवर्ष १४ जनवरी को ही पड़ता है.

मकर संक्रांति हिन्दुओं का प्रमुख पर्व है. मकर संक्रांति पूरे भारत और नेपाल में किसी न किसी रूप में मनाया जाता है. पौष मास में जब सूर्य मकर राशि पर आता है तभी इस पर्व को मनाया जाता है. यह त्योहार जनवरी माह के चौदहवें या पन्द्रहवें दिन ही पड़ता है क्योंकि इसी दिन सूर्य धनु राशि को छोड़ मकर राशि में प्रवेश करता है. मकर संक्रांति के दिन से ही सूर्य की उत्तरायण गति भी प्रारम्भ होती है. इसलिये इस पर्व को कहीं-कहीं उत्तरायणी भी कहते हैं. तमिलनाडु में इसे पोंगल नामक उत्सव के रूप में मनाते हैं जबकि कर्नाटक, केरल तथा आंध्र प्रदेश में इसे केवल संक्रांति ही कहते हैं.

सम्पूर्ण भारत में मकर संक्रांति विभिन्न रूपों में मनाया जाता है. विभिन्न प्रान्तों में इस त्योहार को मनाने के जितने अधिक रूप प्रचलित हैं उतने किसी अन्य पर्व में नहीं.

हरियाणा और पंजाब में इसे लोहड़ी के रूप में एक दिन पूर्व 13 जनवरी को ही मनाया जाता है. इस दिन अँधेरा होते ही आग जलाकर अग्निदेव की पूजा करते हुए तिल, गुड़, चावल और भुने हुए मक्के की आहुति दी जाती है. इस सामग्री को तिलचौली कहा जाता है. इस अवसर पर लोग मूंगफली, तिल की बनी हुई गजक और रेवड़ियाँ आपस में बाँटकर खुशियाँ मनाते हैं. बहुएँ घर-घर जाकर लोकगीत गाकर लोहड़ी माँगती हैं. नई बहू और नवजात बच्चे के लिये लोहड़ी का विशेष महत्व होता है. इसके साथ पारम्परिक मक्के की रोटी और सरसों के साग का आनन्द भी उठाया जाता है.

उत्तर प्रदेश में यह मुख्य रूप से दान का पर्व है. इलाहाबाद में गंगा, यमुना व सरस्वती के संगम पर प्रत्येक वर्ष एक माह तक माघ मेला लगता है जिसे माघ मेले के नाम से जाना जाता है.

14 जनवरी से ही इलाहाबाद में हर साल माघ मेले की शुरुआत होती है. 14 दिसम्बर से 14 जनवरी तक का समय खर मास के नाम से जाना जाता है. 14४ दिसम्बर से 14 जनवरी तक पूरे एक महीने किसी भी अच्छे काम को अंजाम भी नहीं दिया जाता था. मसलन शादी-ब्याह नहीं किये जाते थे परन्तु अब समय के साथ लोगबाग बदल गये हैं. परन्तु फिर भी ऐसा विश्वास है कि 14 जनवरी यानी मकर संक्रांति से पृथ्वी पर अच्छे दिनों की शुरुआत होती है. माघ मेले का पहला स्नान मकर संक्रांति से शुरू होकर शिवरात्रि के आख़िरी स्नान तक चलता है. संक्रांति के दिन स्नान के बाद दान देने की भी परम्परा है. बागेश्वर में बड़ा मेला होता है. वैसे गंगा-स्नान रामेश्वर, चित्रशिला व अन्य स्थानों में भी होते हैं. इस दिन गंगा स्नान करके तिल के मिष्ठान आदि को ब्राह्मणों व पूज्य व्यक्तियों को दान दिया जाता है. इस पर्व पर क्षेत्र में गंगा एवं रामगंगा घाटों पर बड़े-बड़े मेले लगते है. समूचे उत्तर प्रदेश में इस व्रत को खिचड़ी के नाम से जाना जाता है तथा इस दिन खिचड़ी खाने एवं खिचड़ी दान देने का अत्यधिक महत्व होता है.

बिहार में मकर संक्रांति को खिचड़ी नाम से जाता हैं. इस दिन उड़द, चावल, तिल, चिवड़ा, गौ, स्वर्ण, ऊनी वस्त्र, कम्बल आदि दान करने का अपना महत्त्व है.

महाराष्ट्र में इस दिन सभी विवाहित महिलाएँ अपनी पहली संक्रांति पर कपास, तेल व नमक आदि चीजें अन्य सुहागिन महिलाओं को दान करती हैं. तिल-गूल नामक हलवे के बाँटने की प्रथा भी है. लोग एक दूसरे को तिल गुड़ देते हैं और देते समय बोलते हैं -लिळ गूळ ध्या आणि गोड़ गोड़ बोलाअर्थात तिल गुड़ लो और मीठा-मीठा बोलो. इस दिन महिलाएँ आपस में तिल, गुड़, रोली और हल्दी बाँटती हैं.

बंगाल में इस पर्व पर स्नान के पश्चात तिल दान करने की प्रथा है. यहाँ गंगासागर में प्रति वर्ष विशाल मेला लगता है. मकर संक्रांति के दिन ही गंगा जी भगीरथ के पीछे-पीछे चलकर कपिल मुनि के आश्रम से होकर सागर में जा मिली थीं. मान्यता यह भी है कि इस दिन यशोदा ने श्रीकृष्ण को प्राप्त करने के लिये व्रत किया था. इस दिन गंगासागर में स्नान-दान के लिये लाखों लोगों की भीड़ होती है. लोग कष्ट उठाकर गंगा सागर की यात्रा करते हैं. वर्ष में केवल एक दिन मकर संक्रांति को यहाँ लोगों की अपार भीड़ होती है. इसीलिए कहा जाता है-सारे तीरथ बार बार, गंगा सागर एक बार.

तमिलनाडु में इस त्योहार को पोंगल के रूप में चार दिन तक मनाते हैं. प्रथम दिन भोगी-पोंगल, द्वितीय दिन सूर्य-पोंगल, तृतीय दिन मट्टू-पोंगल अथवा केनू-पोंगल और चौथे व अन्तिम दिन कन्या-पोंगल. इस प्रकार पहले दिन कूड़ा करकट इकठ्ठा कर जलाया जाता है, दूसरे दिन लक्ष्मी जी की पूजा की जाती है और तीसरे दिन पशु धन की पूजा की जाती है. पोंगल मनाने के लिये स्नान करके खुले आँगन में मिट्टी के बर्तन में खीर बनायी जाती है, जिसे पोंगल कहते हैं. इसके बाद सूर्य देव को नैवैद्य चढ़ाया जाता है. उसके बाद खीर को प्रसाद के रूप में सभी ग्रहण करते हैं. इस दिन बेटी और जमाई राजा का विशेष रूप से स्वागत किया जाता है.

असम में मकर संक्रांति को माघ-बिहू अथवा भोगाली-बिहू के नाम से मनाते हैं.

राजस्थान में इस पर्व पर सुहागन महिलाएँ अपनी सास को वायना देकर आशीर्वाद प्राप्त करती हैं. साथ ही महिलाएँ किसी भी सौभाग्यसूचक वस्तु का चौदह की संख्या में पूजन एवं संकल्प कर चौदह ब्राह्मणों को दान देती हैं. इस प्रकार मकर संक्रांति के माध्यम से भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति की झलक विविध रूपों में दिखती है.

मदन मोहन सक्सेना

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