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या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा (गुर्जर आंदोलन)

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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मुझे नहीं पता
कि उनका ये आंदोलन जायज है या नहीं
इसका फैसला तो कानूनबिदों और न्यायलय को करना है
लेकिन इस आंदोलन से जिस आम जनता को समस्या हो रही है
उसको समझने के लिए कोई तैयार नहीं है
ना ही रेलये अपनी जिम्मेदारी निभा रही है
सिबाय
विशेष रिफंड काउंटर, हेल्पलाइन तथा सहायता बूथ की व्यवस्था
करके अपने कर्तब्यों की इतिश्री कर ली
राज्य सरकार भी कोई प्रभाबी कदम नही उठा पा रही है
पहले पंजे की सरकार थी और अब कमल की है
लेकिन आंदोलन से निपटने का तरीका एक सा ही है
जनता की परेशानियों से किसी को कोई सरोकार नहीं है
गर्मी के दिन
बच्चो की छुट्टियों का मौसम
चार चार महीने पहले से रिजर्वेशन करबाए हुए आम जनता (रेल यात्री)
और अब
ट्रैन कैंसिलेशन की सौगात
रेलबे ट्रैक की सुरक्षा की जिम्मेदारी किनकी है
रेलवे पुलिस की
रेलवे की
राज्य सरकार की
या फिर
देश के गृह मंत्री की
ऐसी घटनाओं का संघान स्वता न्यायलय क्यों नहीं लेता है
सब ने आँख बंद कर के
मानों देश की जनता को
नयी नयी परेशानी देने का मन बना लिया है
क्या इसका कोई
समाधान नहीं है
कोई भी आकर समूह में
सरकारी जमीन पर कब्ज़ा करले
और अपनी मांगों को पूरा करवाने के लिए
आम देश की जनता को
परेशानी में डाल दे
और पूरा प्रशाशन कोमा में बना रहे
कब बदलेगी ऐसी स्थिति
और बदलेगी भी या नहीं
या फिर ये खेल ऐसे ही चलता रहेगा
और निजाम बदलेंगें
पर ब्यबस्था नहीं बदलेगी। .

मदन मोहन सक्सेना

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