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ग़ज़ल (ये जीबन यार ऐसा ही )

मैं, लेखनी और जिंदगी
मैं, लेखनी और जिंदगी
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ग़ज़ल (ये जीबन यार ऐसा ही )

ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी ही
संभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना है

सभी बेचैन रहतें हैं ,क्यों मीठी बात सुनने को
सच्ची बात कहने पर फ़ौरन रूठ जाना है

समय के साथ बहने का मजा कुछ और है प्यारे
बरना, रिश्तें काँच से नाजुक इनको टूट जाना है

रखोगे हौसला प्यारे तो हर मुश्किल भी आसां है
अच्छा भी समय गुजरा बुरा भी फूट जाना है

ये जीबन यार ऐसा ही ,ये दुनियाँ यार ऐसी ही
संभालों यार कितना भी आखिर छूट जाना है

ग़ज़ल (ये जीबन यार ऐसा ही )
मदन मोहन सक्सेना

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