मैं, लेखनी और जिंदगी
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उत्थान पतन मेरे भगवन है आज तुम्हारे हाथों में
प्रभु जीत तुम्हारें हाथों में प्रभु हार तुम्हारें हाथों में
मुझमें तुममें है फर्क यही मैं नर हूँ तुम नारायण हो
मैं खेलूँ जग के हाथों में संसार तुम्हारें हाथों में
तुम दीनबंधु दुखहर्ता हो तुम जग के पालन करता हो
इस मुर्ख खल और कामी का उद्धार तुम्हारे हाथों में
मेरे तन मन के तुम स्वामी हो भगवन तुम अंतर्यामी हो
मेरे जीवन की इस नौका का प्रभु भार तुम्हारे हाथों में
तुम भक्तों के रखबाले हो दुःख दर्द मिटाने बाले हो
तेरे चरणों में मुझे जगह मिले अधिकार तुम्हारे हाथों में
श्री कृष्णजन्माष्टमी का पर्ब आप सबको मंगलमय हो
मदन मोहन सक्सेना
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